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बिहार चुनाव डायरी-1 : सीमांचल- जहां प्रचुर संसाधनों के बीच उम्मीद दम तोड़ती दिखती है

  • 9 Sep, 2020
अररिया के कुर्साकांटा स्थित एक ग्रामीण सड़क की स्थिति (फोटो- हेमंत कुमार पाण्डेय)

आज से करीब 10 साल पहले एक आर्टिकल में पढ़ा था कि जहां सबसे अधिक संसाधन होते हैं, सबसे अधिक गरीबी वहीं होती है. उस वक्त मैंने इस बात को झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों पर लागू कर देखा तो इसे सटीक पाया. कई अफ्रीकी देश भी इस मान्यता पर फिट बैठते थे. लेकिन मैंने इस बात को बिहार के सीमांचल पर लागू करके नहीं देख पाया था. सीमांचल इलाके में राज्य के चार जिले हैं- अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार. इनमें अररिया की सीमा नेपाल के साथ लगती है. वहीं, किशनगंज नेपाल के अलावा बांग्लादेश की सीमा से भी लगी हुई है.

अब जब बिहार विधानसभा चुनाव-2020 के कुछ महीने पहले एक पत्रकार की नजर से इस इलाके को करीब से देखता हूं तो यह भी झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के साथ ही दिखता है. यहां भरपूर जल संसाधन है. फसलों के लिए ऊपजाउ मिट्टी है. सस्ता मानव संसाधन है. स्वर्णिम चतुर्भुज (राष्ट्रीय राजमार्ग) के जरिए यह देश के अन्य इलाकों से जुड़ता है. लेकिन विकास के मामले में यह राज्य और देश के अन्य इलाकों से पिछड़ा हुआ ही है. यहां से विकास की गाड़ी गुजरती तो जरूर है लेकिन रूकती नहीं.

इसकी पुष्टि नीति आयोग भी करती है. आयोग ने साल 2018 में देश में सबसे अधिक पिछड़े जिलों की सूची जारी की थी. इसमें अररिया, कटिहार और पूर्णिया टॉप-20 में शामिल हैं. इस मामले में किशनगंज यहां के लोगों को थोड़ी राहत देता है कि वह इस सूची से बाहर है. लेकिन कई तरह की बुनियादी समस्या से यह जिला भी जूझ रहा है.

साल 2017 के बाढ़ में जिन पुलों और सड़को को नुकसान पहुंचा था, उनमें से अधिकांश की अब तक मरम्मत नहीं हो पाई है. ध्वस्त पुलों की जगह नए पुलों का निर्माण भी सरकारी लेटलतीफी का शिकार है, जिसके चलते इलाके के लोगों को काफी परेशानी होती है.

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    हरेक रिश्ते की अपनी अलग महक होती है. पिता के साथ मेरे रिश्ते की खुशबू, मिट्टी का सोंधापन लिए हुए थी. उनके शरीर पर मिट्टी का कोई कण न होने के बावजूद मैं जब भी उनके शरीर पर लेटता था, तो उनके शरीर से मुझे मिट्टी की एक भीनी-भीनी महक नाक से मेरे भीतर तक प्रवेश कर जाती थी. उस समय से ही मिट्टी की इस खास महक से मेरा लगाव हो गया. आज मैं उनके शरीर पर नहीं लेट सकता हूं, फिर भी उनकी इस महक को हर वक्त महसूस जरूर करता हूं. मैं अपने पिताजी को अपनों के बीच ‘बाबू’ कहता था. दूसरों को सामने बाबूजी.

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