पिता : मेरे लिए मिट्टी की खुशबू थे और मुझे मिट्टी जैसे होने की आजादी दी
हरेक रिश्ते की अपनी अलग महक होती है. पिता के साथ मेरे रिश्ते की खुशबू, मिट्टी का सोंधापन लिए हुए थी. उनके शरीर पर मिट्टी का कोई कण न होने के बावजूद मैं जब भी उनके शरीर पर लेटता था, तो उनके शरीर से मुझे मिट्टी की एक भीनी-भीनी महक नाक से मेरे भीतर तक प्रवेश कर जाती थी. उस समय से ही मिट्टी की इस खास महक से मेरा लगाव हो गया. आज मैं उनके शरीर पर नहीं लेट सकता हूं, फिर भी उनकी इस महक को हर वक्त महसूस जरूर करता हूं. मैं अपने पिताजी को अपनों के बीच ‘बाबू’ कहता था. दूसरों को सामने बाबूजी.
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