पूस की रात और स्वार्थ

पूस की रात है

सन्नाटा है, ठंड है

यूँ तो ये रात हर साल आती है

लेकिन इस साल की बात कुछ और है

इस बार पूस की रात तो है

लेकिन पहले की तरह पिता की कहानियाँ नहीं हैं

जो इस रात की सन्नाटे को धीरे-धीरे तोड़ती थीं

न ही उनकी शरीर की वह गर्माहट ही है

जिनसे मेरी पूस की रात कटती थी

मैं सोचता था, ये गर्माहट मुझे माँ की गोद में क्यों नहीं मिलती?

मुझे हमेशा माँ की गोद में गर्माहट की जगह एक नमी महसूस होती थी

जैसे उन्होंने अपने भीतर बहुत बड़े सागर को छिपा रखा हो

आखिर इस सागर का..... इस नमी का स्रोत क्या था?

अगर कहीं इसका उद्गम था, तो उन्होंने उसे छिपाकर कहाँ और क्यों रखा था?

ये सवाल मुझे हमेशा परेशान करते थे, लेकिन माँ इसकी थाह नहीं लगने देतीं

आज पूस की रात में मुझे गर्माहट से अधिक उस सागर की कमी महसूस हो रही है

सच ये है कि पूस की रात को मैं हमेशा स्वार्थी हो जाता

गर्माहट पाने के लिए उस अथाह सागर से कट जाता था

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Hemant K Pandey

Journalist & Writer of the people, by the people, for the people.