
अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने यूपीए -2 के मुकाबले कहीं अधिक पैसे विज्ञापनों पर खर्च किए. लेकिन आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक बीते कुछ वर्षों के दौरान इसमें भारी कटौती हुई है. ये टैक्सपेयर के पैसों की बचत तो है, लेकिन मोदी सरकार विज्ञापनों को लेकर जो रूख अपना रही है, वह एक लोकतांत्रिक देश के लिए कितना सही है?
भाजपानीत मोदी सरकार विज्ञापनों पर खर्च को लेकर लगातार सवालों के कटघरे में रही है. इससे पहले की यूपीए-2 सरकार ने पांच वर्षों (2009-2014) तक इन पर कुल 3,480 करोड़ रुपये खर्च की थी. वहीं, मोदी सरकार-1 ने अपने पहले कार्यकाल (2014-2019) के बीच 5,961 करोड़ रुपये खर्च की गई.
हालांकि, सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के जवाब में मिली जानकारी की मानें तो साल 2019-20 में केंद्र सरकार ने इस पर भारी कटौती की है. आरटीआई कार्यकर्ता विवेक पाण्डेय से हमें मिली जानकारी के मुताबिक साल 2019-20 में सरकार ने प्रिंट माध्यम के विज्ञापनों पर 242 करोड़ रुपये (चार मार्च, 2020 तक) खर्च की. वहीं, इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए यह आंकड़ा 230 करोड़ रुपये रहा. इससे पहले साल 2018-19 में ये आंकड़ा क्रमश: 514 करोड़ और 430 करोड़ रुपये रहा था.

वहीं, विवेक ने हमें बताया कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने उन्हें आउटडोर पब्लिसिटी (पोस्टर, बैनर, हार्डिंग आदि) के लिए खर्च रकम की जानकारी साल दर साल न देकर एक साथ उपलब्ध करवाया. इसके चलते इस मद में बीते वित्तीय वर्ष की जानकारी अलग से उपलब्ध नहीं है. मंत्रालय द्वारा उपलब्ध करवाई गई सूचना के मुताबिक साल 2014-15 से लेकर 2019-20 तक 897 करोड़ रुपये खर्च किए गए.
सरकारी विज्ञापन पर कम खर्च के बावजूद ये चिंता का सबब
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