‘हम एसटी में आते हैं, लेकिन दूसरे नहीं बल्कि इस कैटेगरी से ही हमें पढ़ाई-जॉब के लिए लड़ना पड़ता है’

टोटो जनजाति पश्चिम बंगाल के टोटोपाड़ा में रहती है. करीब 1600 की आबादी वाली इस जनजाति की महिलाएं सरकारी आदेश के तहत परिवार नियोजन नहीं करा सकतीं. इसकी कई वजह हैं. इनके बारे में बात करने के लिए रीता टोटो से बेहतर शायद कोई नहीं हो सकतीं. वे इस जनजाति से स्नातक करने वाली पहली महिला हैं. उन्होंने हमसे टोटो जनजाति और इनसे जुड़ी समस्याओं, चुनौतियों और उम्मीदों पर बात कीं.

किसी क्षेत्र में प्रथम होने का दर्जा खुद में ही ऐतिहासिक होता है. साथ ही, यह उस व्यक्ति के साथ-साथ उनके समुदाय को आगे बढ़ाने और प्रेरित वाला साबित होता है. लेकिन, 31 वर्षीय रीता टोटो के साथ ऐसा नहीं है. रीता पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार के टोटोपाड़ा की रहने वाली हैं. वे पूरी दुनिया में केवल इस इलाके में ही सिमटी टोटो जनजाति से आती हैं.

रीता को अपनी जनजाति में स्नातक की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला होने का सम्मान हासिल है. उन्होंने साल 2010 में जलपाईगुड़ी स्थित प्रसन्ना देब वूमेन्स कॉलेज से आर्ट्स विषय में स्नातक की थीं. इससे पहले रीता टोटो ने स्थानीय हाई स्कूल में 10वीं और ब्लॉक मदारीहाट से अंडर ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी की थी. वे अपनी पढ़ाई का श्रेय अपने बैंककर्मी पिता को देती हैं.   

फिलहाल वे टोटो जनजाति के कल्याण के लिए सोशल वर्कर के रूप में काम रही है. उन्हें यह नौकरी साल 2013 में पश्चिम बंगाल की सरकार ने दिया था. हालांकि, टोटो जनजाति के विकास के लिए इसे काफी नहीं मानतीं. दुनिया की सबसे कम आबादी वाले जनजाति में शामिल टोटो के विकास के लिए काम करके वे खुश तो हैं लेकिन, खुद पारिवारिक चुनौतियों का सामना कर रही हैं. साल 2015 में उनके पति की मौत के बाद एक बच्चे और परिवार की अन्य जिम्मेदारियों को वे अकेले संभाल रही हैं.  पिछले साल जब हम उनसे बात करने के लिए टोटोपाड़ा पहुंचे थे तो वे मायके में अपने भाई की शादी की जिम्मेदारियों को निभाने में व्यस्त थीं.

रीता ने हमसे से टूटी-फूटी हिंदी में अपनी पढ़ाई के दिनों की चुनौतियों, अपनी निजी जिंदगी और टोटो जनजाति की परेशानियों और मुश्किलों पर आधे घंटे तक बातें कीं. हम उनकी बातों को उनकी जुबां में ही आपके सामने रख रहे हैं.

आप टोटो जनजाति से ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई करने वाली पहली महिला हैं, इसके लिए भी बधाई. इस मुकाम को हासिल करने तक का आपका सफर कैसा रहा और किन-किन चुनौतियों से जूझना पड़ा था?

रीता टोटो : (थोड़ा रुककर) पढ़ाई के दौरान तो प्रॉब्लम ही प्राब्लम हुआ क्योंकि, हमारा अपना लैंग्वेज टोटो है. लेकिन, पढ़ाई करना पड़ता है बांग्ला से. जो भाषा कभी बोला नहीं था, उसमें पढ़ाई करना पड़ा तो पहला प्रॉब्लम लैंग्वेज का ही था. जब मैंने माध्यमिक (10वीं) पास किया तो एक रिपोर्टर ने फोन किया था. मैं तो समझ भी नहीं पाई कि वह क्या पूछ रहा है. कुछ आवाज नहीं निकल रहा था मेरे गला से, क्योंकि बांग्ला बोलना नहीं आता था.

स्कूल में सर जितना पढ़ाता था, उसे समझ जाता था. लेकिन मुंह से बोलना (बांग्ला) नहीं आता था. नेपाली (भाषा) होता तो सीख जाता.... बात करते-करते. लेकिन, बांग्ला में बात करने वाला आस-पास कोई नहीं था. इसके बाद कॉलेज में ऐसा था कि सर कुछ बोल दिया और उसको कॉपी (नोटबुक पर लिखना) करना पड़ता था. (उनकी बातों को) सुनकर एक लाइन मैं कभी पूरा नहीं कर पाती थी. हरेक लाइन आधा होता था. आधा छोड़ना पड़ता था. लेकिन, टीचर अच्छा था तो बाद में बता देता था और मैं पूरा कर लेता था.

गांव में जब तक रहा तब तक ट्यूशन भी नहीं लिया. बाहर जाकर देखा तो लगा कि प्रॉब्लम हो रहा है. वहां का ऐसा था कि क्लास में बाहरी (दूसरे) बच्चों के साथ हम लोग चल नहीं पाते क्योंकि हम लोग जो जनजाति हूं.....यहां के गांव का. यहां से बाहर जाने पर लगता है कि दुनिया ही दूसरा है. ये प्रॉब्लम तो हमेशा ही फेस करना होता है.

आप टोटो जनजाति से हैं तो क्या इसे लेकर कभी कॉलेज में या बाहर आपको भेदभाव का भी सामना करना पड़ा?

रीता टोटो : नही....नहीं. टोटो होने की वजह से किसी तरह के भेदभाव को फेस नहीं किया है. कभी किसी ने टोटो होने की वजह से भेदभाव नहीं किया है.

तो क्या टोटो होने के चलते पढ़ाई के दौरान अलग से कोई सरकारी सुविधा मिली थी आपको?

रीता टोटो : नहीं. कॉलेज में एडमिशन के वक्त टोटो के लिए अलग से कोई कोटा नहीं होता है. हमारे अलावा जो बाकी एसटी (अनुसूचित जाति) है, उनके साथ लड़ना (प्रतिस्पर्धा) पड़ता है. हमें प्राइमर ट्राइब कहा जाता है लेकिन कॉलेज बोलो, जॉब बोलो. कुछ भी हो, उन लोगों (अन्य जनजाति) के साथ लड़ना पड़ता है. ये सिर्फ मेरी बात नहीं है. बाकी टोटो भाई-बहनों को भी ऐसा करना पड़ता है.

टोटोपाड़ा में टोटो जनजाति की तुलना में नेपाली समुदाय की आबादी अधिक हो गई है. इसके चलते अब यहां नेपालियों का प्रभुत्व अधिक है. (Image : Hemant Kumar Pa

आपने अपने पढ़ाई के दौरान जिन मुश्किलों का सामना किया है, उनसे टोटो भाई-बहन दूर रहें, इसके लिए सोशल वर्कर के रूप में क्या आप कुछ कर पा रही हैं?

रीता टोटो : जब मुझे पढ़ाई में दिक्कत हो रहा था तो इच्छा था कि टोटो बच्चों को स्कूल टीचर बन कर पढ़ा सकूं. लेकिन, ड्रीम-ड्रीम होता है, उसे हकीकत में करना मुश्किल होता है. जो सपना था, उसे मैं पूरा नहीं कर पाई. ग्रेजुएशन के बाद एमए (पोस्ट ग्रेजुएट) में एडमिशन लिया था. लेकिन पढ़ नहीं पाया. ग्रेजुएशन के बाद एक निजी कंपनी में काम मिला था तो कोलकाता चली गई थी. इसकी वजह से मेरी पढ़ाई कन्टीन्यू नहीं हो पाया.

निजी कंपनी में कुछ महीने काम करने के बाद मैं गांव वापस आ गई. इसके बाद प्राइवेट स्कूल में चार महीने काम किया. उस दौरान यहां के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने मेरा नाम मुख्यमंत्री को भेज दिया था. इसके बाद मुझे सरकार की ओर से सोशल वर्कर का जॉब दिया गया.

अपने पारंपरिक घर के साथ टोटो जनजाति की लड़कियां (Image : Hemant Kumat Pandey)

आप टीचर बनना चाहती थीं तो क्या अब नहीं बन सकतीं?

रीता टोटो : (रूककर, थोड़ा सोचते हुए) बन सकता है लेकिन.....उस टाइम का जो मेरा परिवेश था अब तो वह नहीं है. अभी ज्यादा मुश्किल हो गया है. पहले तो सपोर्ट करने वाला था सब. लेकिन अब शादी के बाद नहीं होता है. अब ऑफिस संभालना, घर संभालना और बच्चों को संभालना मुश्किल हो गया.

टोटो के लिए जो योगदान आप टीचर बनकर देना चाहती थीं, उसे नहीं कर पाई. इसके बावजूद सोशल वर्कर के रूप में आप इनकी कितनी मदद कर पाती हैं?

रीता टोटो : मेरा काम ही टोटो पर ही है. जिन टोटो का राशन कार्ड नहीं है, उनका हेल्प करना. इसके अलावा कोई नया जन्म हुआ, कोई मर गया. उनका रिकॉर्ड रखना. ट्राइबल सर्टिफिकेट बनवाना. मैं यहां से कागज लेकर मदारीहाट (23 किमी दूर) जाती हूं. फिर वहां से फोन आता है कि काम हो गया है फिर जाकर ले आती हूं.

आपको कभी ऐसा नहीं लगता है कि आपको और अधिक काम करने का अधिकार मिलना चाहिए, टोटो लोगों की विकास के लिए?

रीता टोटो : पहले तो मेरे पास कुछ भी नहीं था, इसलिए अब जितना भी दिया जा रहा है, उससे संतुष्ठ हूं. अपनी जनजाति को जितना हेल्प कर सकती हूं, (वह) कर रही हूं. मैं ऐसा (स्नातक पास) करने वाली फर्स्ट लेडी हूं, इस वजह से मुझे हाई-फाई नहीं चाहिए. टोटो बोलकर मुझे आज ये नौकरी दिया गया है. लेकिन, बाहर का दुनिया अलग है. वहां जो पढ़ाई में अच्छा होगा, क्वालिफिकेशन अच्छा होगा, नौकरी तो उसको ही मिलेगा. जब मुझे नौकरी नहीं मिला था तो (उस वक्त) जो झेला था, नौकरी के बाद उससे अधिक मिला है तो उसे मैं क्यों बुरा कहूं. मैं खुश हूं.

टोटोपाड़ा स्थित माध्यमिक स्कूल (Image : Hemant Kumar Pandey)

चूंकि आपने ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की है और इसके बाद आपको सरकारी नौकरी भी मिली है, तो क्या इसका प्रभाव आपके समाज पर हुआ है? यानी आपकी वजह से लड़कियों की शिक्षा की ओर लोगों ने ध्यान दिया है?

रीता टोटो : (खुश होकर) हां, ये सब बहुत हुआ. लेकिन जब बाद में मेरा ही जॉब नहीं हो रहा था तो (यह सब) थम गया. मेरे बाद ग्रेजुएशन करने वाली संजीता टोटो, शोभा टोटो और शांति टोटो ऑनर्स से पास की है. ये लोग बाहर रहकर पढ़ाई किया है. लेकिन......इनको जॉब नहीं हो रहा है. इसके अलावा यहां जो पढ़ रहा है, वह सब सोच रहा है कि इनको जॉब नहीं हो रहा है, तो हमारा क्या होगा!  लड़कों में भी जिनके बाबा (पिता) लेबर का काम करता है, वह यह सब सोचकर बीच में ही पढ़ाई छोड़ देता है और बाहर मजदूरी करने के लिए चला जाता है.

हमारे बाबा को जॉब था. उन्होंने हम लोगों को पढ़ाया. और हम लोग अपने बच्चों को पढ़ाएगा. लेकिन, पापा के वक्त के लोग जो अपने बच्चों को नहीं पढ़ा पाया. अब उनके भी बच्चों को यह समझ नहीं आ पाया है कि पढ़ाई क्या चीज है. वह सब पीछे हैं, अभी. 

आपकी नजर में टोटो के लिए सबसे बड़ी समस्या क्या है?

रीता टोटो : ग्रेजुएशन करने वाली मैं फर्स्ट (महिला) हूं, ये बोलकर मुझे नौकरी दिया गया है. यह तो ठीक है. लेकिन.... जो भी बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं या कर चुके हैं, उनकी लिए मुश्किलें हैं. मेरे पीछे 2013 में एक ग्रेजुएशन किया है, संजिता टोटो. वह पढ़ाई में भी अच्छा था. इंग्लिश लेकर पास किया है. लेकिन उसका जॉब नहीं हो रहा है. बाकी का भी अभी तक जॉब नहीं हो रहा है. वह सभी (बेरोजगार) बाहर काम करने के लिए जा रहा है. सिक्किम, भूटान लेबर का काम करने के लिए जा रहा है. (इतना बोलने के बाद वे चुप हो जाती हैं)

इसके अलावा और भी कुछ प्रॉब्लम हैं?

रीता टोटो : प्रॉब्लम! आपने देखा ही होगा, रास्ता का है. हम लोग तो झेल लेते हैं तो हमारा आदत सा हो जाता है. लेकिन जो बाहर से आता है, उसको पता लगता है कि क्या-क्या प्रॉब्लम है.

(टोटोपाड़ा जाने के लिए मदारीहाट से जाल्दापाड़ा नेशनल पार्क के रास्ते जाना पड़ता है. यहां पहुंचने के लिए सात छोटी-बड़ी नदियां पार करनी पड़ती हैं. लेकिन इनमें से किसी पर भी पुल नहीं बना है. इसकी वजह से बरसात के मौसम में रास्ता बंद हो जाता है.)

देश के इस सुदूर और दुर्गम इलाके से देश के लोगों को आप कोई संदेश देना चाहेंगी? या फिर सरकारों से कुछ कहना चाहेंगीं?

रीता टोटो : टोटो में जो पढ़ाई करके बैठा है, उनको कोई काम हो जाएं. इनके लिए जॉब में कोटा (आरक्षण) हो. एक साल दो भी नौकरी हो जाए तो बहुत है. हमारे लिए कॉलेज में भी कोटा हो. टोटो को दूसरे एसटी के साथ मत जोड़िए. वे लोग बहुत पहले से पढ़ाई कर रहे हैं. हम लोगों का तो पापा के जनरेशन से पढ़ाई शुरू हुआ है. उनके समय भी दो-चार लोग पढ़ाई किए थे. टोटो में तो पढ़ाई अभी शुरू ही हुआ है.

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Hemant K Pandey

Journalist & Writer of the people, by the people, for the people.