
इस बीमारी का नाम है स्टॉकहोम सिंड्रोम. मानव दिमाग से जुड़ी इस बीमारी को जानने और समझने से पहले जर्मनी के तानाशाह हिटलर की एक कहानी पढ़िए....
हिटलर एक बार संसद में एक मुर्गा लेकर आ गया और फिर सबके सामने उसके पंखों को एक-एक करके नोंच दिया. इस दौरान मुर्गा दर्द से बिलबिलाता रहा. लेकिन जर्मन तानाशाह खुद में ही मस्त रहा. फिर हिटलर ने बिना पंख वाले मुर्गे को जमीन पर पटक दिया. इसके बाद उसने अपनी जेब से अनाज के कुछ दाने निकाले और मुर्गे की ओर फेंक दिए. संसद में मौजूद सभी लोग इस घटना को आंखें फाड़कर देख रहे थे. लेकिन हिटलर इस काम में तल्लीन था. हिटलर आगे चलते हुए दाना फेंकता....मुर्गा उसके पीछे आता रहता. आखिरकार मुर्गा उसके पैरों में आ खड़ा हुआ.
इसके बाद हिटलर ने अपना सीना चौड़ा करते हुए कहा, ‘लोकतांत्रिक देशों की जनता इस मुर्गे की तरह होती है. उसके शासक (प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति) जनता का सब कुछ पहले लूटकर उन्हें अपाहिज कर देते हैं और बाद में उन्हें थोड़ी सी खुराक देकर उनका मसीहा बन जाते हैं.'
अब आज के भारत की कहानी
सुनीता देवी (बदला हुआ नाम) बिहार स्थित एक पिछड़े हुए जिले के एक दुर्गम गांव में रहती हैं. पक्की सड़क यहां पर अब तक नहीं पहुंची. लेकिन विकास के नारे यहां की हवाओं में गूंज रहे हैं. चुनावी मौसम है. सो, कच्ची सड़कों से कई कुर्ता-पायजामे वाले भी एक-एक कर पहुंच रहे हैं. सुनीता देवी और उनके जैसे परिवारों के लिए आजादी के बाद से ही पंचवर्षीय योजना के मतलब यही रहा है कि नेता लोग पांच साल में एक बार दिखते हैं.
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