• Hemant K Pandey
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कोरोना के साथ हम एक और ‘महामारी’ से पीड़ित हैं और इसकी पहचान भी नहीं हो पा रही

  • 12 Sep, 2020
मध्य प्रदेश के गुना में एक किसान जिसकी फसल पर नगर पालिका ने जेसीबी चलाई थी. इसके बाद उसने कीटनाशक पी लिया था. (फोटो क्रेडिट- फेसबुक)

इस बीमारी का नाम है स्टॉकहोम सिंड्रोम. मानव दिमाग से जुड़ी इस बीमारी को जानने और समझने से पहले जर्मनी के तानाशाह हिटलर की एक कहानी पढ़िए....

हिटलर एक बार संसद में एक मुर्गा लेकर आ गया और फिर सबके सामने उसके पंखों को एक-एक करके नोंच दिया. इस दौरान मुर्गा दर्द से बिलबिलाता रहा. लेकिन जर्मन तानाशाह खुद में ही मस्त रहा. फिर हिटलर ने बिना पंख वाले मुर्गे को जमीन पर पटक दिया. इसके बाद उसने अपनी जेब से अनाज के कुछ दाने निकाले और मुर्गे की ओर फेंक दिए. संसद में मौजूद सभी लोग इस घटना को आंखें फाड़कर देख रहे थे. लेकिन हिटलर इस काम में तल्लीन था. हिटलर आगे चलते हुए दाना फेंकता....मुर्गा उसके पीछे आता रहता. आखिरकार मुर्गा उसके पैरों में आ खड़ा हुआ.

इसके बाद हिटलर ने अपना सीना चौड़ा करते हुए कहा, ‘लोकतांत्रिक देशों की जनता इस मुर्गे की तरह होती है. उसके शासक (प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति) जनता का सब कुछ पहले लूटकर उन्हें अपाहिज कर देते हैं और बाद में उन्हें थोड़ी सी खुराक देकर उनका मसीहा बन जाते हैं.'

अब आज के भारत की कहानी

सुनीता देवी (बदला हुआ नाम) बिहार स्थित एक पिछड़े हुए जिले के एक दुर्गम गांव में रहती हैं. पक्की सड़क यहां पर अब तक नहीं पहुंची. लेकिन विकास के नारे यहां की हवाओं में गूंज रहे हैं. चुनावी मौसम है. सो, कच्ची सड़कों से कई कुर्ता-पायजामे वाले भी एक-एक कर पहुंच रहे हैं. सुनीता देवी और उनके जैसे परिवारों के लिए आजादी के बाद से ही पंचवर्षीय योजना के मतलब यही रहा है कि नेता लोग पांच साल में एक बार दिखते हैं.

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  • पिता : मेरे लिए मिट्टी की खुशबू थे और मुझे मिट्टी जैसे होने की आजादी दीपिता : मेरे लिए मिट्टी की खुशबू थे और मुझे मिट्टी जैसे होने की आजादी दी

    पिता : मेरे लिए मिट्टी की खुशबू थे और मुझे मिट्टी जैसे होने की आजादी दी

    हरेक रिश्ते की अपनी अलग महक होती है. पिता के साथ मेरे रिश्ते की खुशबू, मिट्टी का सोंधापन लिए हुए थी. उनके शरीर पर मिट्टी का कोई कण न होने के बावजूद मैं जब भी उनके शरीर पर लेटता था, तो उनके शरीर से मुझे मिट्टी की एक भीनी-भीनी महक नाक से मेरे भीतर तक प्रवेश कर जाती थी. उस समय से ही मिट्टी की इस खास महक से मेरा लगाव हो गया. आज मैं उनके शरीर पर नहीं लेट सकता हूं, फिर भी उनकी इस महक को हर वक्त महसूस जरूर करता हूं. मैं अपने पिताजी को अपनों के बीच ‘बाबू’ कहता था. दूसरों को सामने बाबूजी.

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  • आधा सच और आधी कल्पना से बनी हुई ‘अंतिमा’, जो मानव मन के कई झूठों को तोड़ने की कोशिश करती हैआधा सच और आधी कल्पना से बनी हुई ‘अंतिमा’, जो मानव मन के कई झूठों को तोड़ने की कोशिश करती है

    आधा सच और आधी कल्पना से बनी हुई ‘अंतिमा’, जो मानव मन के कई झूठों को तोड़ने की कोशिश करती है

    ‘हर आदमी आधा हिस्सा अपनी कल्पना का इस्तेमाल करता है और आधा सच.....तब कहीं जाकर आप किसी से लगातार संवाद रख पाते हैं. तो अगर मैं उस अपनी आधी कल्पना वाले आदमी को लिखना चाहता हूं तो स्वार्थ कैसे हुआ? मैं अपना हिस्सा लिख रहा हूं. और मैं उसकी इजाजत भी लेना चाहता हूं, पर मैंने देखा है कि वह हमेशा घातक होता है. क्या हम अपने सपनों में आए लोगों से पूछते हैं कि आप मेरे सपने में हैं, आपको इससे कोई परेशानी तो नहीं है?’

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    बिहार चुनाव डायरी -2 : तमाम अनिश्चितताओं के बीच अप्रत्याशित नतीजे ही इसकी नियति है

    बीते महीने बिहार चुनाव की तारीखों का एलान जब किया गया था, उस समय काफी सारी चीजें तय निश्चित दिख रही थीं. लेकिन चुनावी पारा चढ़ने के साथ- साथ इसे लेकर अनिश्चितता बढ़ती जा रही है. हालांकि, इन सब के बीच भी काफी कुछ चीजें तय दिख रही हैं.

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    मौजूदा वक्त में ऐसी कई चीजें विवादों में हैं, जिन्हें विवादों में नहीं होना चाहिए. इनमें संसद का उच्च सदन- राज्यसभा है. इसके उपसभापति हैं. संसद में सरकार की कार्यप्रणाली है. वहीं, कुछ चीजें जो संसद में होनी चाहिए, वे नहीं हैं. विपक्ष नहीं है. विपक्ष की आवाजें नहीं हैं.

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    अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने यूपीए -2 के मुकाबले कहीं अधिक पैसे विज्ञापनों पर खर्च किए.

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    आज से करीब 10 साल पहले एक आर्टिकल में पढ़ा था कि जहां सबसे अधिक संसाधन होते हैं, सबसे अधिक गरीबी वहीं होती है.

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